शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

कविता :- अधमरा बगुला

 "अधमरा बगुला"
मेरे यहाँ मिला एक अधमरा बगुला।
आँखों में डर पंख से बेबस झाड़ियो में छुपा हुआ।।
दिया एक कीड़ा उसने मन किया।
प्यास लगी तो खुद पानी पिया।।
खुद को पंखो से लचर हौसलो से बेबस पाया।
अपने पंखो से नीराश झाड़ियों में छिपा हुआ।।
पूरा दिन बिताया आँखों में आश लिया हुआ।
भूख लगी तो खुद खाना खाया।।
प्यास लगी तो पानी पिया।
फिर सहम कर बैठ गया झड़ी में।।
मनो इंतजार कर रहा हो मौत का।
आखिर वो घड़ी आ ही गयी और वो चला गया।।
कविः -प्रांजुल कुमार ,कक्षा -11th ,अपना घर ,कानपुर ,


कवि परिचय :- यह हैं प्रांजुल जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं और कानपुर के अपना घर नामक संस्था में रहकर अपनी पढाई कर रहे हैं।  प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है।  प्रांजुल पढ़कर एक इंजीनियर बनना चाहते हैं और फिर इंजीनियर बनकर समाज के अच्छे कामों में हाथ बटाना चाहता हैं। प्रांजुल को बच्चों को पढ़ाना बहुत अच्छा लगता है।

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