"फिर भी फूल मुस्कुराता है"
जितने भी कांटे हो पेड़ों में।
गिर जाते पत्ते हवा के अंधेड़ो में।।
पानी के लिए तरस जाये।
बिना छाँव के धूप में ही रह जाये।।
फिर भी फूल मुस्कुराते है।
पेड़ों की डालियाँ चर-चराने लगे।।
कोयल बैठ गुनगुनाने लगे।
पत्तियाँ पेड़ को छोड़ जाने लगे।।
पेड़ फिर भी भँवरों को बुलाता है।
फूल हमेश मुस्कुराता है।।
मीठी शहद से लेकर शहीद तक जाता है।
बिना रोये पैरों तले कुचला जाता है।।
कभी दो जोड़ो को माला बन मिलाता है।
कभी कचरे के ढेर में सिमट जाता है ।।
फिर भी फूल मुस्कुराता है।
कविः-प्रांजुल कुमार, कक्षा - 11th, अपना घर, कानपुर,
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