" हाशिल करनी है ऊँचाइयों को "
आओ चले कुछ सोचे,
हाथ पर हाथ रखे न बैठे |
जीवन मैं तुम्हारे पास बहुत से हैं कार्य,
नहीं करना है तुम्हें अभी आराम |
जिस दिन जगे उसी दिन होगी शुरुआत,
हर दिन अपना कार्य करते रहना |
एक दिन जरूर प्रसंसा होगी,
वह दिन तेरे लिए खास होगा |
मत बैठने देना अपने अंदर के ज्वाला को ,
मेहनत करना है तुम्हें जी तोड़ कर तुम्हे,
हाशिल करना है तुम्हे उन ऊचाइयों को| ,
जो इंतज़ार कर रही तेरे आने का |
कर दिखा अब अपने अंदर के आत्मविश्वास को,
बता दे मैं कितना आतुर हूँ कुछ करने को |
कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर
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