बुधवार, 19 अगस्त 2020

कविता : आसमान को ढूँढ़ते चले

" आसमान को ढूँढ़ते चले "

आसमान को ढूँढ़ते चले,

मंजिलों को ढूँढ़ते चले | 

थक गए हैं पैर फिर भी,

हम तो टुकड़ों में पलते चले | 

ढूँढा अपनी मंज़िल को आसमां पर भी,

उम्मीद तो मुझमें बची है अभी | 

चाहे जितनी दूर भले,

हम तो मंजिल की तलाश में यूँ चले | 

 कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11th , अपना घर

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