" आसमान को ढूँढ़ते चले "
आसमान को ढूँढ़ते चले,
मंजिलों को ढूँढ़ते चले |
थक गए हैं पैर फिर भी,
हम तो टुकड़ों में पलते चले |
ढूँढा अपनी मंज़िल को आसमां पर भी,
उम्मीद तो मुझमें बची है अभी |
चाहे जितनी दूर भले,
हम तो मंजिल की तलाश में यूँ चले |
कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11th , अपना घर
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