" उड़ चले "
हर वन में हर उपवन मे,
पक्षियों की है जोरों से शोर |
उड़ती -उड़ती धरती की हर कोने में,
नई संदेशा ला रही है |
गगन की उचाई को छू जा रही है |
अपनी फुर्तीली उड़ान से,
पूरी दुनिया घूमना चाह रही है |
इसी तरह अपनी सफर वह पूरी करती ,
अपनी नई दुनिया की खोज में ,
उड़ चली अपनी पथ की ओर |
कवि :पिंटू कुमार , :कक्षा 5th , अपना घर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें