"आंबेडकर जयंती "
जिस जगह से मैं गुजरूं ,
वह जगह अपवित्र हो जाता |
जिस कुंआ का पानी मैं पिया ,
वह कुंआ का पानी अपवित्र हो जाता |
हर कदम और हर जगह पर ,
छुवा -छूत से लड़ना पड़ता |
इस समाज में हर कठिनाइयों को सहना पड़ता ,
जब एक ने आवाज इस पर उठाई |
हजारो की संख्या के साथ लोग है आए ,
हर एक चीजों से हम सब को आजाद है कराया |
छुवा -छूत और जात -पात से ,
इस समाज से छुटकारा है दिलाया |
जिस जगह से मैं गुजारूं ,
उस जगह पर चैन से सो सकूं |
कवि :संजय कुमार , कक्षा:12th
अपना घर
2 टिप्पणियां:
सुन्दर
बहुत सुन्दर
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