"छुट्टी "
हाय दिन भर सोना हो गया ,
यह छुट्टी नहीं अब रोना हो गया |
सुबह शाम बस खुद में खो गया ,
न जाने किसने जगाया और सो गया |
मेरा मन हर सपने में मचलता गया ,
न जाने कब सूरज भी ढलता गया |
जो सोया फिर सबकुछ खोया ,
पाने के लालच में मन को ढोया |
हाय दिन भर सोना हो गया ,
यह छुट्टी नहीं अब रोना हो गया |
कवि :कुलदीप कुमार ,कक्षा :12th
अपना घर
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