"मुसाफ़िर "
हम मिसफ़िर बनकर |
निकल पड़े अनोखी राह की तलाश में,
न तपती धूप की परवाह |
न आंधी और तूफान की ,
और न वह डरावनी रातों की |
हम सब निकल पड़े ,
ढलते सूरज की ओर |
चमकते लालिमा को देखकर ,
टिमटिमाते तारो को देखकर|
बहती शीतल हवाओं में ,
हम सब निकल पड़े|
कवि : अमित कुमार , कक्षा :10th
अपना घर
अपना घर
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