"नींद "
सोया था मैं न जाने कहाँ ,
सपना खोया था मेरा जंहा |
सबकुछ छूटता जा रहा है,
मेरा लक्ष्य मुझसे रूठता जा रहा है |
मै ढूंढ रहा हूँ अपने आप को ,
वही फूर्ति और ऐहसास को |
मै पूरा जोर लगा दूंगा ,
अपने सपने को अपना बना लूंगा |
सोया था मै न जाने कंहा ,
सपना खोया था मेरा जंहा |
कवि :कुलदीप कुमार , कक्षा :12th
अपना घर
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