"काश मेरा वह वक्त बदल जाये "
काश मेरा वह वक्त बदल जाये |
शदियों से बन्दी जंजीर की ताला फीसल जाये ,
मैं आजाद हो जाऊगा |
काश इस जिंदगी में कोई नई मोड़ आ जाये ,
पेरान रात्रि में जहाँ कोई न हो |
पेड़ शांत हो , आसमा में चद्रमा खोई हुई हो ,
बस मुझे उस पथ पर रौशनी दिखा जाये |
काश मेरा वक्त बदल जाये ,
इस मजबूर वाणी , बनजर प्राणी में |
कही से पानी आ जाये ,
फैल जायेंगी सारे जहाँ |
सवर जाये वह पेड़ , खिल जायेगे वह फूल ,
काश इसका वह वक्त आ जाये |
कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 11th
अपना घर
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