रविवार, 25 अगस्त 2024

कविता :"संघर्ष "

"संघर्ष "
देख है हजारों की संघर्ष,
जब नहीं थे चीजे उपलब्ध | 
लोगो में थे आपसी संबंध ,
न थी एक दूसरे के प्रति घमंड | 
उम्मीदों की छाया बनते थे वह सब ,
मुशीबतो के  आने पर ,
जीत हो या हर हो 
संघर्ष जारी रहता था | 
देखा है हजारों की संघर्ष ,
जब नहीं थी चीजे उपलब्ध | 
कवि : अमित कुमार 
कक्षा : 10th 

मंगलवार, 20 अगस्त 2024

कविता:"गलियां "

 "गलियां "
ये सुनसान सी गालिया ,
पता नहीं कहा तक जाती है | 
ये संघर्ष की मंजिल ,
पता नहीं कहा से आती है | 
अँधेरे से भरा है पूरी दुनिया ,
पता नहीं कब लोग जागेंगे | 
एक नई राह की तलाश में ,
कब हमारा साथ अपनाएंगे | 
ये सुनसान सी गलियां ,
पता नहीं कब होगा हमारा | 
कवि : रोहित कुमार ,कक्षा :7th 
अपना घर 

रविवार, 18 अगस्त 2024

कविता :"किताबे "

"किताबे "
ये  बेजुवा किताबे बहुत कुछ कह जाती है ,
हर एक शब्दों पर बहुत कुछ बना जाती है | 
समुद्र से गहरा ज्ञान हमे दे जाती है ,
ये बेजुवा किताबे बहुत कुछ कह जाती है | 
बुझे हुए दीप को जला जाती है ,
हर एक भटके को नई राह दिखाती है | 
 जो इस जिंदगी को हार कर बैठ जाता है ,
उसे जिंदगी का राह दिखती है | 
ये बेजुवा किताबे बहुत कुछ कह जाती है 
कवि :मंगल कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

शुक्रवार, 16 अगस्त 2024

कविता :"राह "

 "राह "
राह  जिस पर जिंदगी होती है शुरू ,
चल देते है अपने मकसद को लेकर | 
जिंदगी में लोगे खाते है ठोकर ,
फिर भी मुस्कुराते रहते है | 
नदी भी हमे कुछ बता जाती है ,
रुकना नहीं है सिखा जाती है| 
जिंदगी में आएगा  रूकावट,
उससे पार करना सीखा जाती है | 
चाह वाला राह सही होता है ,
बस कुछ बनने का अपना होता है | 
कवि :अजय कुमार,कक्षा :10th 
अपना घर 
  

मंगलवार, 13 अगस्त 2024

कविता:"यारी दोस्ती "

"यारी दोस्ती "
छोड़ो अब यारी दोस्ती ,
दोनों एक तरफ़ा है | 
वे तुम्हे हंसाएंगे और रूलायेंगे ,
सच तो यह है वे तुमसे गलतियां करवाएंगे | 
छोड़ो अब यारी दोस्ती ,
मौका मिला है कुछ कर जाने का | 
कुछ बड़ा करने का ,
सपनो को साकार करने का | 
कुछ बनने का और बनाने का ,
अपनों को खुश करने का | 
समय नहीं बचा है तुम्हारे पास ,
ये यारी दोस्ती बढ़ाने का | 
छोड़ो यरी दोस्ती,जो एकतरफा  है | 
कवि :सुल्तान ,कक्षा :10th 
अपना घर 

सोमवार, 12 अगस्त 2024

कविता :"पहरा "

"पहरा "
ख्वाबों पर पहरा ,
पर हर कदम कठिनाई से चला | 
किसी तरह उस ओर तक पहुँचा ,
जंहा कब्र का निशान मिला | 
जिज्ञासा हो रहा था मुझमे ,
पर हमारे लिए वक्त काम था | 
ख्वाबों पर पहरा ,
चांदनी रात की शाम थी | 
सोचा था कुछ अनोखा ,
पर यह बात दिल को दर्द देता था | 
ख्वाबो पर पहरा ,
जैसे सपनो का मर जाना | 
अब बस सुकून के लम्हे गुजरना ,
पर ख्वाबो पर पहरा | 
कवि :अमित कुमार ,कक्षा 10th 
अपना घर 

शुक्रवार, 9 अगस्त 2024

कविता :"गर्मी "

"गर्मी "
गर्मी है या फि आग का गोला ,
गरम हवा या आग का प्याला | 
मुरझा दिया फिर नए पत्ते ,
सुखा दिया फिर ठंडे तालाब | 
ख़त्म हो गया वो हर चीज ,
जो प्रकृति ने था संभाला | 
गर्मी है या आग का गोला ,
लू चलती है आवाजे आते है | 
धूल साथ मे गर्म हवा पास में ,
गर्मी है या आग का गोला | 
कवि :रोहित कुमार ,कक्षा 7th 
अपना घर 

गुरुवार, 8 अगस्त 2024

कविता :"समय "

"समय "
बहुत वक्त गुजर गया ,
 घडी को देख-देख  कर | 
बहुत देर से एक ही आवाज ,
सुनाई दे रहा घर-घर | 
दस बजे से देखना शुरू किया था ,
बज गए अब घडी में चार | 
पांच बजे खेलने जाएंगे,
वह समय हो जायेगा बर्बाद | 
छै बजे से फर पड़ने बैठेंगे ,
 वही पर थोड़ा सा ही-ही ,हा -हा करेंगे | 
बजा देंगे घडी में आठ ,
फिर खाना खाएंगे मिनट साठ | 
बहुत वक्त गुजर गया।,
घडी को देख-देख कर | 
कवि :गोविंदा कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

मंगलवार, 6 अगस्त 2024

कविता: "सपना "

 "सपना "
एक सपना था जो कभी अपना था ,
वह एक जिंदगी थी जो कभी अपनी थी | 
चाह रहा था उंचाईओं को छूना ,
वह तो बस एक सपना था जो कभी अपना था | 
ये खूबसूरत सी दुनिया को ,
चाह रहा था अपनाना | 
वो मंजिल का रास्ता ,
जो रहा था एक मोड़ पे | 
वह तो बस एक सपना था ,जो कभी अपना था| 
ये छोटी सी काली परछाई ,
चाह रही थी साथ अकेला | 
ये दुनिया को बदलने का जुल्म सहने को ,
वह तो बस एक सपना था जो कभी अपना था | 
कवि :मंगल कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

रविवार, 4 अगस्त 2024

कविता : "समय "

 "समय "
जीवन का पल-पल एक सोना है ,
कब बीता समय लौट नहीं पाता | 
इनका न एक पल भी खोना है ,
जो पल को न  संभल सका | 
उसे क्या पाता दिन और रात ,
मंजिल के ओर बढ़ते कदम भी  |
बरबस होकर पीछे को मुड़ जाता है |
जो इंसान पल को नहीं समझा ,
वह आगे कभी नहीं बढ़ता है | 
जो उपयोग करता है पल का,
वह उच्च शिखर पर पहुँचता है | 
कवि :संतोष कुमार ,कक्षा :9th 
अपना घर 

शनिवार, 3 अगस्त 2024

कविता :"गर्मी "

"गर्मी "
गर्मी आई गर्मी आई ,
कड़क धूप की गर्मी आई | 
तन मन को खूब जलाए ,
कड़क धूप सब  सताए | 
गर्मी से राहत पाने के लिए ,
ऐसी कूलर ,पंखा ,खोज | 
गर्मी से राहत पाए ,
गर्मी आई ,गर्मी आई | 
कड़क धूप की गर्मी आई ,
कवि : अभिषेक कुमार ,कक्षा :6th 
अपना घर