"सपना "
एक सपना था जो कभी अपना था ,
वह एक जिंदगी थी जो कभी अपनी थी |
चाह रहा था उंचाईओं को छूना ,
वह तो बस एक सपना था जो कभी अपना था |
ये खूबसूरत सी दुनिया को ,
चाह रहा था अपनाना |
वो मंजिल का रास्ता ,
जो रहा था एक मोड़ पे |
वह तो बस एक सपना था ,जो कभी अपना था|
ये छोटी सी काली परछाई ,
चाह रही थी साथ अकेला |
ये दुनिया को बदलने का जुल्म सहने को ,
वह तो बस एक सपना था जो कभी अपना था |
कवि :मंगल कुमार ,कक्षा :8th
अपना घर
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