"गलियां "
ये सुनसान सी गालिया ,
पता नहीं कहा तक जाती है |
ये संघर्ष की मंजिल ,
पता नहीं कहा से आती है |
अँधेरे से भरा है पूरी दुनिया ,
पता नहीं कब लोग जागेंगे |
एक नई राह की तलाश में ,
कब हमारा साथ अपनाएंगे |
ये सुनसान सी गलियां ,
पता नहीं कब होगा हमारा |
कवि : रोहित कुमार ,कक्षा :7th
अपना घर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें