" जब मैं सोता हूँ "
जब रात में सोता हूँ,
खुद को अकेला मैं पाता हूँ |
न जाने सब कहाँ चले जाते हैं,
मैं सिर्फ अकेला ही रह जाता हूँ |
सपने में बहुत लोग आते हैं
पर वे सब एक पुतले होते हैं |
उनसे बातें करने की इच्छा होती है,
पर उनसे बातें ही नहीं हो पाती |
सपने को साकार होते हुए देखता हूँ,
पर उत्साह बढ़ाने के लिए कोई नहीं होता है |
सपने की दुनियाँ ही निराली होती है
छोटी पर बहुत अच्छी होती है |
कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर
2 टिप्पणियां:
Very nice post
Mere blog par aapka swagat hai...
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