" भारत माता की पुकार "
क्या हम भी कभी खुल कर जी पाएंगें,
या फिर कम उम्र में ही जिंदगी बिता देंगें |
क्या हम भी किसी को अपना हाल बता पाएँगें,
या फिर दिल की बात दिल में ही छिपाएँगे |
क्या हम भी कभी खुले आसमान में घूम पाएँगें,
आजादी के गीत खुल कर गा पाएँगें |
क्या हम भी कभी अपने घर -परिवार से मिल पाएँगें,
या फिर दूर से ही आँखों में आँसूं बहाएँगें |
शरहद पर बस आजादी के गीत गाता हूँ ,
घर को हमेशा अलविदा कहकर आता हूँ |
भारत माता को यूँ ही पुकारता हूँ,
अपने दोस्तों का हौशला बढ़ाता हूँ |
कवि : सुल्तान , कक्षा : 6th , अपना घर
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