गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019

कविता : बिगड़ती पर्यावरण

" बिगड़ती पर्यावरण "

जिनको  जीना था,
वे सब जी गए 
बड़े आराम से 
 जब सब कुछ साफ था, सुंदर था
 तो वे जिए बड़े आसानी से | 
 कठिन कर दिया जीना, 
हमारी युवा पीढ़ी को | 
जिसने बेकार कर दिया, 
इस साफ पर्यावरण को | 
नष्ट कर रहे है,
हम सबका भविष्य
जो हम जीने वाले हैं, 
ख़त्म कर रहे है वे सपने 
जो मैंने देखे हैं | 

कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता नितीश के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | इस कविता का शीर्षक
" बिगड़ती पर्यावरण " है | नितीश इस कविता के माध्यम से यह  बताना चाहतें है की पर्यावरण दिन बद्र ख़राब हो रहा है और इसके कारण है आज के इंसान | आने वाली पीढ़ी कैसे जिएगें यह नहीं सोच रहे है | पर्यावरण को शुद्ध रखें | 

कोई टिप्पणी नहीं: