मंगलवार, 8 अक्टूबर 2019

कविता : रविवार

" रविवार "

शब्द सुनकर ही मन में उल्लास आता है
जब दिल , मन मनमौजी बनकर उछलता है |
लेकिन रविवार की असहनीय सी शांति,
कहीं ला न दे क्रांति |
मुझे डर इसी बात का रहता है,
क्योंकि अब तो हर शख्स यही कहता है |
रविवार हमारा आरामदेह का दिन है,
और हमें बस विश्राम ही करना है |
जो करते हैं रविवार को भी काम,
बस लेते हैं वे सभी रविवार का नाम |
हमें मिलकर देना होगा इसका अंजाम,
क्योंकि रविवार को कर रहे है काम |
हर घर में रहे सहनीय सी शांति,
जिसे न बनना पड़े एक क्रांति |

कवि : समीर कुमार, कक्षा : 9th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता समीर के द्वारा लिखी गई है प्रयागराज के रहने वाले हैं | समीर को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | समीर अपनी कविताओं में ऐसी चीजों को व्यक्त जो उन्होंने खुद अनुभव किया हो |

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