" खिलता हुआ फूल "
खिलता हुआ फूल चहकता हुआ लगता है,
हर रंग को बदलकर संवरना अच्छा लगता है |
खुशबू की महक से मोहित करने वह खाश अंदाज,
और सजकर गले हर बनना उसे सुहाना लगता है |
कीचड़ में हो तो भी महकने कोशिश करता है,
वह फूल जो खिलता हुआ मन को मोहित करता है |
अपने पंखुड़ियों को जब फैलाता है,
आस्मां से आकाश ओर जब झाँकता है |
हमें लगता वह प्रार्थना कर रहा है,
की हम खिले रहे मुस्कान से मिले रहे हैं |
कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (30-10-2019) को "रोज दीवाली मनाओ, तो कोई बात बने" (चर्चा अंक- 3504) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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