सोमवार, 28 अक्तूबर 2019

कविता : इन्सां सोच

" इन्सां सोच " 

बदल रहा है जमाना, 
बदल रही है इन्सां सोच | 
बढ़ रही है जनसंख्या,
बढ़ रहीं है तकनीकी खोज |
पुराणी सोच को भुलाकर, 
भीड़ - भाड़ की जिंदगी में आकर | 
जीवन की रेस में दौड़ रहे है,
गिर रहे , फिसल रहे और
 वक्त आने पर संभल रहे है  | 
घड़ी की सुई बढ़ रही है, 
पल - पल वक्त बदल रहा है | 
मन तो मचल रहा है, 
पर सोच इन्सां को बदल रहा है | 

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है जो  की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | प्रांजुल पढ़ लिखकर एक इंजीनियर बनना चाहते हैं और गरीब बच्चों की मदद करना चाहतें हैं | 

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