"बहती हवाएँ कुछ कहती हैं"
बहती हवाएँ कुछ कहती हैं।
बहते वक्त किसी की नहीं सुनती हैं।।
कभी सर-सर तो कभी भर-भर।
कभी ठण्डी तो कभी बंजर।।
ठण्ड में तो सिकुड़ ही जाती।
गर्मी में अपने को फैलाती।।
बसन्त में मन्द-मन्द बहती।
गर्मी में अपने को लू है कहती।।
सुबह-शाम शान्त है रहती।
दोपहर में अपने को कुछ और कहती।।
कविः -प्रांजुल कुमार ,कक्षा -11th ,अपना घर ,कानपुर ,
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