"पेड़"
एक पेड़ हमेशा सुनसान सा लगता है।
पूरी दुनियाँ हिलती है पर।।
खुद एक जगह पर खड़ा रहता है।
ये एक वही पेड़ है।।
जो एक बीज से उत्पन्न हुआ।
खुद अपना फल नहीं खाता।।
पर दुसरों को देता है दुआ।
मन उदास होकर औरों को छाँव देता।।
पर वक्त के हालात उन्हें काट देता।
हम सभी को सपथ लेना होगा।।
अब एक पेड़ नहीं दो पेड़ लगाना होगा।
कविः -प्रांजुल कुमार ,कक्षा -11th ,अपना घर ,कानपुर ,
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