मंगलवार, 5 जनवरी 2021

कविता:- कल अब कहाँ है आता

 "कल अब कहाँ है आता"
कल अब कहाँ है आता।
कल-कल करके काम है टल जाता।।
लाखों लोग रखते है इस पर भरोसा।
यह दिन होता है हर एक लिए अनोखा।।
कई जीवन है बस इसी पर टिकी।
कहीं चली न जाये यह कल फीकी।।
कल अब कहाँ है आता।
उगता सूरज अब रोज है ढल जाता।।
आती है वही रात और सवेरा।
सोच रहा हूँ कल कब आएगा मेरा।।
कल अब कहाँ है आता।
कल-कल करके काम है टल जाता।।
कविः- कुलदीप कुमार, कक्षा -9th, अपना घर, कानपुर,
 

कवि परिचय : यह हैं कुलदीप कुमार जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं।  कुलदीप पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं।  कुलदीप एक नेवी ऑफिसर बनना चाहते हैं।  कुलदीप अपनी कविताओं से लोगों को जागरूक करने की कोशिश करते हैं।  इनको  क्रिकेट खेलना पसंद है
 

3 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (06-01-2021) को "अभी बहुत कुछ सिखायेगी तुझे जिंदगी"     (चर्चा अंक-3938)   पर भी होगी। 
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
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BAL SAJAG ने कहा…

Dhanyvad Dr.Rupchandra shastri jee

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर