"जीना सीख"
जब मै गिरा तो।
उठाने कौन आएगा।।
जब चोट लगेगी।
तब दिखलाने कौन जायेगा।।
मै बैठा सोच रहा था।
अपने दिमाग के दरवाजे ठोक रहा था।।
अपने है तो,मै ये सोच रहा था।
अपने सर के बालों को नोच रहा था।।
कि जिसका कोई नहीं है।
जिसका घर ही नहीं है।।
जिसको प्यार मिला ही नहीं है।
जिसके पास कुछ भी नहीं है।।
वो क्या करता होगा।
बैठकर आहें कितना भरता होगा।।
किस्मत के मार से रोता होगा।
पर आँसू पोंछने के लिए।।
न कोई होता होगा।
पर वे कभी हर नहीं मानते हैं।।
हक़ लड़ाई लड़ते रहते हैं।
वे मुशीबतों में चीखते है।।
पर जीना वो सीखते हैं।
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