गुरुवार, 28 जनवरी 2021

कविता:- जीना सीख

"जीना सीख"
जब मै गिरा तो।
उठाने कौन आएगा।।
जब चोट लगेगी।
 तब दिखलाने कौन जायेगा।।
मै बैठा सोच रहा था। 
अपने दिमाग के दरवाजे ठोक रहा था।।
 अपने है तो,मै ये सोच रहा था। 
अपने सर के बालों को नोच रहा था।।
कि जिसका कोई नहीं है।
जिसका घर ही नहीं है।।
जिसको प्यार मिला ही नहीं है।
जिसके पास कुछ भी नहीं है।।
वो क्या करता होगा।
बैठकर आहें कितना भरता होगा।।
किस्मत के मार से रोता होगा। 
पर आँसू पोंछने के लिए।।
न कोई होता होगा।
पर वे कभी हर नहीं मानते हैं।। 
हक़ लड़ाई लड़ते रहते हैं।
वे मुशीबतों में चीखते है।।
पर जीना वो सीखते हैं। 
 कविः -देवराज कुमार, कक्षा -10th , अपना घर , कानपुर ,
 

कवि परिचय : यह हैं देवराज जो की बिहार के रहने वाले हैं। और अपना घर में रहकर  ये पढ़ाई कर रहे हैं।  देवराज पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं। | देवराज डांस बहुत अच्छा कर लेते हैं। और साथ ही साथ  अच्छी कवितायेँ भी लिख लेते हैं।
 

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