"छोटे से सपने थे किसी समय"
छोटे से सपने थे किसी समय।
नाजुक से हाथ थे जिस समय।।
मुश्किलों का बवण्डर था।
बस खुशियों का समुन्दर था।।
रबर के चपल थे।
बालो में कंघी न थी।।
कोई दिशा निर्धारित न थी।
जीवन का कोई आधार न था ।।
बस था तो जुनून।
सोच थी दायरा का जुलूस।।
जिसने बना दिया मायूश।
आज सपने बड़े है इस समय में।।
मजबूत कंघा है इस समय।
बस देरी है मुसीबतों को सुलझाने की।।
खुशियों को और बढ़ाने की।
कविः -प्रांजुल कुमार ,कक्षा -11th ,अपना घर ,कानपुर ,
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें