" हर मुकाबला "
पैरों तले दरार पड़े हैं ,
पर फिर भी सीना तान खड़े हैं ।
आपदा से लड़ने के लिए ,
जीत की ऊंचाई चढ़ने के लिए ।
लौट जा तू निराले ,
अब हम न हार मानने वाले ।
चाहे कर दे ऊँची मुश्किलों की दीवार ,
पर फिर भी कर देंगे हम उसको पार ।
एक नहीं,दो नहीं,
हम करोड़ों से लड़ जाएंगे ।
हर मुकाबला हम जीत के दिखाएंगे । ।
कवी: देवराज कुमार, कक्षा; 12th
अपना घर
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