शनिवार, 3 दिसंबर 2022

कविता: "रोशनी"

"रोशनी"
इस रोशनी में भी मुझे ,
अँधेरा सा लगने लगा है।
ये ढालता सूरज भी मुझे अब ,
साथ देने लगा है।
कम्बख्त भी मेरे साथ,
क्या खेल खेला है।
जहाँ मुझे खड़ा होना था,
वहां मुझे गिरा दिया है ।
जिस तरह सूरज शाम को,
ढल जाने का इन्तजार करता है।
उसी तरह ढल जाने की राह में हूँ ।

कवी: सनी कुमार , कक्षा : 11वीं
अपना घर

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