गुरुवार, 23 सितंबर 2021

कविता : " मै कौन हूँ"

" मै कौन हूँ"

मै कौन हूँ | 

मुझे नहीं पता पर ,

एक आजाद पक्षी के तरह हूँ | 

मै हवाओ में टहलता हूँ ,

झरनों में खेलता हूँ | 

कठिन परिस्तिथियों से गुजरता हूँ ,

सूखे पत्तों के तरह बिखर जाता हूँ | 

लहरों के साथ गाता हूँ ,

मैं अंधकार में बदल जाता हूँ | 

मुझे नहीं पता पर ,

मैं एक आजाद पक्षी के तरह हूँ | 

कवि : सुल्तान कुमार , कक्षा :7th 

अपना घर

 

बुधवार, 22 सितंबर 2021

कविता : " हिन्द देश के बासी हम "

" हिन्द देश के बासी हम "

 हिन्द देश के बासी हम | 

हिंदी नहीं किसी से कम ,

पूरा जीवन हमने काटे | 

बोल -बोल कर हिंदी के सहारे ,

इसके आगे फिके सारे गम | 

हिंदी है हम हिंदी नहीं किसी से कम ,

क्या प्यारे -प्यारे शब्द निराले | 

अ से ज्ञ तक याद हमें है सारे ,

जोक भरे इतने शब्द हमारे |

जोश भरे है हमारे नारे ,

हिन्द देश के वासी हम | 

हिंदी नहीं किसी से कम ,

कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 10th 

अपना घर

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

सोमवार, 20 सितंबर 2021

कविता : "हिंदी दिवस "

"हिंदी दिवस "

 उन शब्दों की श्रृगार है हिंदी | 

जो हर हिदुस्तानियों के लब्जो पर भंडार है हिंदी ,

गहनों में सजावट है हिंदी |  

हर एक शब्दों में बनावट है हिंदी ,

सहज तरीके से बोले जाने वाली | 

फूल की किलकारी वह हिंदी ,

इस पावक दिवस पर | 

नई उंमग की उत्सव है हिंदी ,

कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 11th 

अपना घर

 

रविवार, 19 सितंबर 2021

कविता: "जीवन की नयी शुरुआत "

"जीवन की नयी शुरुआत "

 हर एक सुबह जीवन की नयी | 

शुरुआत कराती है ,

और हर शाम व्याकुल सी दिखती | 

जैसे अपन दर्द  क्या कराती है ,

सुबह समय सूर्य की किरणे |  

अपने ऊपर जम के बिखरती है ,

एक -एक सुबह जीवन की नयी | 

शुरुआत कराती है ,

मन अपना लक्ष्य बनाती है | 

आगे बढ़ने के लिए ,

कवि : राज कुमार ,  कक्षा : 12th 

अपना घर


शनिवार, 18 सितंबर 2021

कविता : " भोर -भोर की है बात "

"  भोर -भोर  की है बात "

 भोर -भोर  की है बात | 

मै सोया था घर में टांग पसार ,

हल्की सी रौशनी आ रही थी | 

मेरे चेहरे के पास ,

मीच कर मै सोया आँख | 

बाहर चिड़ियाँ कर रही थी बात ,

मचा -मचा कर शोर | 

भर दिये थे मेरे कान ,

कह रही थी उठ जा जवान | 

कितनी सुन्दर सुबह है ,

मत  कर तू इसे बर्बाद | 

इससे कुछ सीख जाऐगा ,

मन कुछ नया लक्ष्य बनाएगा | 

कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 11TH 

 अपना घर  

शुक्रवार, 17 सितंबर 2021

कविता : " धूप को देककर मौसम बदल कर "

" धूप को देककर मौसम बदल कर "

धूप को देककर मौसम बदल कर | 

आया जब सब बादलजम कर ,

लगे दिखाने अपना रंग -रूप | 

कहाँ चला गया न नजर आए थोड़ी भी धूप ,

हवाओं के संग उड़ता चला आया | 

हर घर और खेत में छा गया ,

गरज -मलक कर खूब वह बरसा | 

रात -दिन को कुछ भी न समझा ,

टीप -टिप और छम -छम की आवाजे आती रहीं | 

धूप को देककर मौसम बदल कर ,

आया जब सब बादल जम कर | 

कवि : पिन्टू कुमार , कक्षा : 6th 

 अपना घर

गुरुवार, 16 सितंबर 2021

कविता : "हक"

"हक"

 हम से वह हक छीना गया | 

जिस पर मेरा हक था ,

मेरे पैरो को रोका गया | 

जिस पथ पर मेरा हक था ,

सब ने मुँह मोड़ लिया | 

मेरे चीखने व चिल्लाने पर ,

उसने हमारा घर उजाड़ दिया | 

जिस पर रहने का का हक था ,

उसने देश देश से निकाल दिया | 

जिस देश में रहने का हक था ,

जिस ने खून की नली बहा दी | 

उसी पर मेरा शक था ,

कवि : सुल्तान कुमार ,  कक्षा : 7th 

अपना घर

बुधवार, 8 सितंबर 2021

कविता: " आज मैं खुद को क्या कहु "

" आज मैं खुद को क्या कहु "

आज मैं खुद को क्या कहु | 

न रहने का तरीका आता ,

न बात करने का ढ़ग | 

पर हर कठिनाइयो में खड़े रहते हम ,

न खाने  का खाना रहता |  

न सोने के लिए घर ,

फिर भी हौसलों से बढ़ते रहे हम | 

आज जो भी हूँ ,

हर कठिनाइयो से गुजरा हूँ | 

मुझे माता -पिता और शिक्षक का साथ मिला ,

आज मैं खुद को क्या कहु | 

कवि : रविकिशन कुमार , कक्षा : 12th 

अपना घर 

           

सोमवार, 6 सितंबर 2021

कविता : "चलना सिखाया "

"चलना सिखाया "

कभी बचपन में  मम्मी ने उँगली | 

पकड़ कर चलना सिखाया तो ,

कभी पापा ने | 

जब सहारा मिला मम्मी -पापा का तो ,

घुटने पर गुड़कर चलना सिखा तो | 

कभी टीचर ने कदम पे  कदम मिलाकर ,

चलना सिखाया तो | 

कभी भैया लोगों ने जीवन की राह पर ,

चलना सिखाया तो | 

कभी दोस्तों ने उत्साह बढ़ाया ,

कुछ  कर के दिखाने का | 

कवि : सनी कुमार ,कक्षा : 10th 

अपना घर

शनिवार, 4 सितंबर 2021

कविता : " मै अब भी याद करता हूँ उस पल को "

" मै अब भी याद करता हूँ उस पल को "

मै अब भी याद करता हूँ उस पल को | 

जब मै घुठनों के बल चलता था ,

मुझे याद है वह दिन | 

जब खटिए से गिर जाता था ,

मुझे याद है वह दिन | 

जब मै मिट्टी से सना रहता था ,

उसे डर था कि गिर | 

न जाए कही हम ,

इसलिए उँगली पकड़ चकता था | 

मै अब भी याद करता हूँ उस पल को ,

कवि : सुल्तान कुमार 

अपना घर

बुधवार, 1 सितंबर 2021

कविता : "किस्मत "

"किस्मत "

किस्मत से है हारे ये |

पर सपने है सवारे ये ,

दूर -दूर पैदल चलकर | 

आँखों में उम्मीद को लेकर ,

बढ़ रहे है मंजिल की ओर | 

दिन में पापा की सिर्फ एक रोजी ,

जो लाता  घर शाम की रोटी | 

पर न है हारे ये ,

पर सपनो को सवारे ये | 

समाज से आगे चलकर ,

घर वाले से लड़कर | 

जाना चाहते है उस छोर ,

दिल में  आशा लेकर | 

बढ़ रहे है  मंजिल के ओर ,

कवि : देवराज कुमार 

अपना घर