मंगलवार, 9 फ़रवरी 2021

कविता:- अभी तक तू सो रहा है

 "अभी तक तू सो रहा है"
अभी तक तू सो रहा है।
सूरज सिर चढ़ा है।।
सभी अपने काम को बढ़ा है। 
सभी सपनो को अपने।।
केवल ख्वाबों में जग रहा है।
केवल विचार करने तक।।
क्या तुम्हे पाने का हक़ है।
चालो मेहनत की माला जपने।।
किन बातों में खो रहा है।
अभी तक तू सो रहा है।।
इधर उधर की बातो में उलझा।
घुट रहा है रह रह कर।।
अपने आपसे सुलह कर।
कुछ न बदलने पर तू रो रहा है।
  अभी तक तू सो रहा है।।
कविः- अखिलेश कुमार, कक्षा -10th, अपना घर, कानपुर,

कोई टिप्पणी नहीं: