"आसमान की कुछ बुँदे भा गयीं"
आसमान की कुछ बुँदे भा गयीं।
जब छिटक के मेरे सर पर छा गयी।।
शांति की गंगा बस मेरे मन में बहने लगी।
धीरे-धीरे वह बुँदे बड़ी होती गयी।।
एक तेज बारिश में बदलती गयी।
पता नहीं वो कहा से आयी।।
मेरे तन मन को भीगा गयी।
हमें नहलाकर पाक कर गयी।।
सर-सर हवा चली तो शायद।
तो वह बर्ष का सन्देश ले आयी।।
इस तेज बारिश के अंदर खो गयी।
आसमान की बुँदे भा गयी।।
जब छिटक कर मेरे सर पर छा गयी।
कविः- समीर कुमार, कक्षा - 10th, अपना घर, कानपुर,
कवि
परिचय:- ये समीर कुमार है। उत्तर प्रदेश इलाहाबाद के रहने वाले है। इन्हे
संगीत में बहुत रूचि है। ये बड़े गायक बनाना चाहते है। ये कविता भी अच्छी
लिखते है।
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