"मेरी चाह है घूमू ,खेलूं"
मेरी चाह है घूमू ,खेलूं।
जो पसंद आये सब ले लूँ।।
कहानियों की दुनियाँ में डूब जाऊ।
भरे समंदर में उछलकर डुबकी लगाऊं।।
बाग बगीचों में इतराऊं।
भारी परिस्थियों में भी डट जाऊं।।
औरों के साथ खुशियाँ बांटू।
अपने अरमानों में चार चाँद लगाऊं।
फूलो की खुशबू में ढल जाऊं।।
कविः -प्रांजुल कुमार ,कक्षा -11th ,अपना घर ,कानपुर ,
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