"कितना सुहावना मौसम"
कितना सुहावना मौसम।
आज मैंने देखा।।
लाल सूर्य सुबह की।
और बनी थी रेखा।।
चिड़िया अपने घरों को छोड़कर।
जा रही थी किसी और ओर।।
मछुआरे निकले नदी की ओर।
तालाब में फेक बंसी की डोर।।
बच्चे लेकर बस्ते।
चले स्कूल के रस्ते।।
चाय,टोस्ट और सुबह के नास्ते।
चल देते हैं स्कूल के वास्ते।।
कितना सुहावना मौसम।
आज मैंने देखा।।
कविः -प्रांजुल कुमार ,कक्षा -11th ,अपना घर ,कानपुर ,
5 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-02-2021) को "नयन बहुत मतवाले हैं" (चर्चा अंक-3987) पर भी होगी।
--
मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जितना सुन्दर मौसम उतना ही मनोरम चित्र खींच दिया है तुमने - वाह!
Dhanyvad sir
बहुत सुंदर । वाह
नन्हे कवि प्रांजुल को उज्जवल भविष्य की हार्दिक शुभकामनाएं। बहुत सुंदर रचना 👌👌
टिप्पणी पोस्ट करें