"आज मौसम जो उभरा"
आज मौसम जो उभरा।
सदियों से इंतजार था।।
जो शायद अब नहीं बुरा।
मौसम तो ढ़लते उभरते रहते है।।
कल हो या परसों या हो पूरा साल।
अगर वो मौसम चला गया।।
तो दुबारा आने लगेगा पूरा साल।
या फिर क्या तुम्हें पता है।।
या फिर मुझे क्या पता है।
इसका न आने का मन हो पूरा साल।।
ये मौसम जो उभरा आज।
शायद सदियों से था इंतजार।।
कविः - विक्रम कुमार ,कक्षा -10th ,अपना घर, कानपुर,
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