बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

कविता:- छिप गया अब बादल

"छिप गया अब बादल"
छिप गया अब बादल।
जो बरसने की चाह में था।।
एक जुड़ाव जो जमीन। 
और आसमान का था ।।
बंजर जमीन को सींचकर। 
 हरा भरा बनाने के ख्याल में।।
तबदील होने चला है।
जो बरसने की चाह में था।
 नाकाम कोशिशों के बावजूद।।
चारो तरफ हरयाली भर आया है।
    कविः - विक्रम कुमार ,कक्षा -10th ,अपना घर, कानपुर,
 

कवि परिचय : यह कविता विक्रम के द्वारा लिखी गई है।  विक्रम बिहार के नवादा जिले के रहने वाले हैं। विक्रम को कवितायेँ लिखना बहुत पसंद है। और वह अपनी प्यारी -प्यारी कविताओं एकत्रित कर उन्हें एक किताब में प्रकाशित करवाना चाहता है।  विक्रम एक रेलवे डिपार्टमेंट में काम करना चाहते हैं।
 
 

 
 
 
 

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