"छिप गया अब बादल"
छिप गया अब बादल।
जो बरसने की चाह में था।।
एक जुड़ाव जो जमीन।
और आसमान का था ।।
बंजर जमीन को सींचकर।
हरा भरा बनाने के ख्याल में।।
तबदील होने चला है।
जो बरसने की चाह में था।
नाकाम कोशिशों के बावजूद।।
चारो तरफ हरयाली भर आया है।
कविः - विक्रम कुमार ,कक्षा -10th ,अपना घर, कानपुर,
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें