शुक्रवार, 5 जनवरी 2018

कविता : बच्चे

" बच्चे "

ये बच्चे हैं कितने प्यारे, 
लगते हैं आसमान के तारे | 
जैसे टिमटिमा रहे हो ये सारे,, 
जिस तरह बिखरे हो तारे | 
वैसे बिखरे हैं बच्चे ये सारे, 
अपने मन के करते हैं बच्चे | 
नहीं किसी की सुनते है बच्चे, 
नन्हे हैं नादान हैं ये बच्चे | 
नासमझ मासूम से हैं ये बच्चे, 
हर बातों पर जिद पकड़े | 
बैठ जाते हैं ये बच्चे, 
छोटी बातों पर ये रूठ कर |  
कर जाते हर फरमाइश | |   

नाम :  नितीश कुमार , कक्षा : 7th , अपनाघर


कवि परिचय : यह हैं नितीश कुमार जो की बिहार राज्य से कानपूर में पढ़ने के लिए आये हुआ हैं जो आजकल अपनाघर में रहकर पढ़ाई कर रहे है | कविताएँ ये बहुत अच्छी लिखते हैं साथ ही साथ खेल में भी माहिर हैं | हर काम को सिरियस में लेते हैं |  

1 टिप्पणी:

'एकलव्य' ने कहा…

आपको सूचित करते हुए बड़े हर्ष का अनुभव हो रहा है कि ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग 'मंगलवार' ९ जनवरी २०१८ को ब्लॉग जगत के श्रेष्ठ लेखकों की पुरानी रचनाओं के लिंकों का संकलन प्रस्तुत करने जा रहा है। इसका उद्देश्य पूर्णतः निस्वार्थ व नये रचनाकारों का परिचय पुराने रचनाकारों से करवाना ताकि भावी रचनाकारों का मार्गदर्शन हो सके। इस उद्देश्य में आपके सफल योगदान की कामना करता हूँ। इस प्रकार के आयोजन की यह प्रथम कड़ी है ,यह प्रयास आगे भी जारी रहेगा। आप सभी सादर आमंत्रित हैं ! "लोकतंत्र" ब्लॉग आपका हार्दिक स्वागत करता है। आभार "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/