"गहराइयाँ "
गहराइयाँ अब बढ़ रही है ,
हर राज को छुपा रही है |
शामे ढल रही है ,
कुछ तो खो रही है |
गहराइयाँ अब बढ़ रही है ,
ढूढ़ती आँखों में आँसू |
होती सिसकियाँ बेकाबू ,
हालात अब बदल रहे है |
बंजारे बन चल रहे है ,
गहराइयाँ अब बढ़ रही है |
दूरियां खुद से ही बढ़ रही है ,
बढ़ती हुई उम्मीदों को रोक रही है |
गहराइयाँ अब बढ़ रही है ,
कवि :साहिल कुमार, कक्षा :8th
अपना घर