सोमवार, 6 मई 2019

कविता : सागर बन जाऊँ

" सागर बन जाऊँ "

मन करता है सागर बन जाऊँ,
नदियों के संग मैं मिल जाऊँ |
कभी बिहार तो कभी कश्मीर,
पूरी दुनियाँ की सैर कर आऊँ |
चले मेरे ऊपर से ठंडी समीर,
गाए बस मेरे बारे में कबीर |
चाहे हो वो अमीर या हो गरीब,
अच्छा हो जाए सभी का नसीब |

कवि : समीर कुमार  कक्षा : 9th , अपना घर

कवि परिचाय : यह कविता समीर के द्वार लिखी गई है जो की प्रयागराज के निवासी है और अपनी शिक्षा को ग्रहण करने के लिए अपना घर संस्था से जुड़े हुए है | समीर को कवितायेँ लखने के आलावा गीत भी गाना बहुत पसंद है | समीर को क्रिकेट खेलना बहुत पसंद है |

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