रविवार, 5 मई 2019

कविता : तपती हुई धूप

" तपती हुई धूप "

इस तपती  हुई धुप ने,
पसीना से लथपथ किया |
गर्म हवा में शरीर है जलता,
यही लू से बीमार है करता |
बाहर निकलने का हिम्मत न करता,
पेड़ों को ये दर्द पहुँचाता |
धूपों से लोग तड़प रहे हैं ,
पेड़ की छाँव के लिए झूझ रहे हैं |
ये तपती हुई धूप ने,
पसीना से लतपत किया |
पानी के लिए तरस रहे हैं,
बिना पानी के मर रहे हैं | 

नाम : सार्थक कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता सार्थक के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के नवादा जिले के निवासी हैं | सार्थक को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और बहुत सी कवितायेँ लिखते हैं | सार्थक आर्मी में भर्ती होना चाहता है | सार्थक बहुत अच्छा लड़का है और सबकी मदद करता है |

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