" खुद की दुनियाँ "
काश खुद का एक दुनिया होता |
दिन रात सपनों में होता
टिमटिमाते हुए तारों देखता |
गोल से चाँद को ताकत
अपनी भी एक दुनिया होता |
उसमे मैं राजा होता
काश खुद का एक दुनियाँ होता |
परिंदों की तरह भटकता ना फिरता
अपनी जिंदगी मजे से जीता |
काश खुद का दुनिया होता
कवि :अजय कुमार ,कक्षा:9th
अपना घर
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