"छवि "
अपनी छवि को देख देख |
सही गलत समझ नहीं पा रहा हूँ
अब छोटी छोटी बातों में भी |
उदास रहने लगा हूँ
कभी कभी सोचता हूँ |
कि अपने भूत भूल जाऊँ
पर जितना भूलना चाहता हूँ |
उतना ही याद करने लगा हूँ
भविष्य में क्या करना है |
ये भी नहीं सोच रहा हूँ
जब भी उनकी तस्वीर देखता हूँ |
तब तब रोने लगा हूँ
कवि :महेश कुमार ,कक्षा :9th
अपना घर
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