" इस जहाँ पर खोया हूँ "
खोया हूँ इस जहाँ पर ,
चाँद- तारो के पास |
सूरज की रोशनी जैसे ,
लगते है तारे मिटमिटाते हुए |
तारो की रोशनी देती राहत ,
सपने की दुनिया में न होती आहट |
खो जाता हूँ उस दुनिया में ,
सो जाता हूँ फूलो की कलियों में |
खोया हूँ इस जहाँ पर ,
चाँद- तारो के पास |
कवि : महेश कुमार ,कक्षा : 6th ,अपना घर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें