" शीत "
यह एक शीत की है कहानी
एक वाष्प तो है फिर भी है पानी |
सर्द ऋतु में जन्म तो लेती है
ठण्ड से नमीं को भर देती हैं |
हरे घास को ठण्ड है पहुँचाती,
कहाँ गिरेगी यह खुद नहीं जानती
छूते ही यह विलुप्त हो जाती
अपनी प्रतिभा को यूँ ही बतलाती
शीत कभी समाप्त नहीं होती
हर सुबह सूरज से पहले होती
कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर
कवि परिचय : यह कविता प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है जिसका शीर्षक है " शीत " | प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और अभी तक बहुत सी कवितायेँ लिख चुके हैं | प्रांजुल हमेशा प्रकति पर कवितायेँ लिखना पसंद करते हैं | पढ़ लिखकर एक इंजीनीर बनना चाहतें हैं |