गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019

कविता : शीत

" शीत "

यह एक शीत की है कहानी
एक वाष्प तो है फिर भी है पानी |
सर्द ऋतु में जन्म तो लेती है
ठण्ड से नमीं को भर देती हैं |
हरे घास को ठण्ड है पहुँचाती,
कहाँ गिरेगी यह खुद नहीं जानती
छूते ही यह विलुप्त हो जाती
अपनी प्रतिभा को यूँ ही बतलाती
शीत कभी समाप्त नहीं होती
हर सुबह सूरज से पहले होती

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 10th , अपना घ

कवि परिचय : यह कविता प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है जिसका शीर्षक है " शीत " | प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और अभी तक बहुत सी कवितायेँ लिख चुके हैं | प्रांजुल हमेशा प्रकति पर कवितायेँ लिखना पसंद करते हैं | पढ़ लिखकर एक इंजीनीर बनना चाहतें हैं |


कविता : बिगड़ती पर्यावरण

" बिगड़ती पर्यावरण "

जिनको  जीना था,
वे सब जी गए 
बड़े आराम से 
 जब सब कुछ साफ था, सुंदर था
 तो वे जिए बड़े आसानी से | 
 कठिन कर दिया जीना, 
हमारी युवा पीढ़ी को | 
जिसने बेकार कर दिया, 
इस साफ पर्यावरण को | 
नष्ट कर रहे है,
हम सबका भविष्य
जो हम जीने वाले हैं, 
ख़त्म कर रहे है वे सपने 
जो मैंने देखे हैं | 

कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता नितीश के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | इस कविता का शीर्षक
" बिगड़ती पर्यावरण " है | नितीश इस कविता के माध्यम से यह  बताना चाहतें है की पर्यावरण दिन बद्र ख़राब हो रहा है और इसके कारण है आज के इंसान | आने वाली पीढ़ी कैसे जिएगें यह नहीं सोच रहे है | पर्यावरण को शुद्ध रखें | 

बुधवार, 30 अक्टूबर 2019

कविता : मेरा पन्ना

" मेरा पन्ना "

ऐसा क्या हो जाता है,
जब नम्बर कम आता है | 
मैं भी क्या सोचूँ ,
जो हर पल गलत ही लगता है | 
हर पन्ने को मैंने सजाया,
विचारों को उसमें समाया | 
सोचा न था हो जाएगी गलती,
इतना पढ़ा फिर भी मिला रददी |
हर शिक्षक के तने हैं पड़ते,
मैं भी जानूँ क्या की वे मुझसे जलते | 
हर पन्ने में चलता है लाल - लाल,
लगता है मैंने कर दिया कुछ बेहाल | 
ऐसा क्या हो जाता है, 
जब नम्बर कम आता है | 

कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता कुलदीप के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं | कुलदीप ने यह कविता अपने एक पन्ने पर लिखी है जिसका शीर्षक " मेरा पन्ना " हैं | कुलदीप को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | कुलदीप एक नेवी ऑफिसर बनना चाहते हैं |    

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2019

कविता : खिलता हुआ फूल

" खिलता हुआ फूल "

खिलता हुआ फूल चहकता हुआ लगता है,
हर रंग को बदलकर संवरना अच्छा लगता है | 
खुशबू की महक से मोहित करने वह खाश अंदाज, 
और सजकर गले हर बनना उसे सुहाना लगता है | 
कीचड़ में हो तो भी महकने कोशिश करता है,
वह फूल जो खिलता हुआ मन को मोहित करता है | 
अपने पंखुड़ियों को जब फैलाता है,
आस्मां से आकाश ओर जब झाँकता है | 
हमें लगता वह प्रार्थना कर रहा है, 
की हम खिले रहे मुस्कान से मिले रहे हैं |  

कवि : विक्रम कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता विक्रम के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | विक्रम को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | विक्रम एक नेवी ऑफिसर बनना चाहते हैं | पढ़ लिखकर गरीबों की सहायता करना चाहते हैं | पढ़ने में बहुत होशियार है और समाज के प्रति सोचना बहुत अच्छा लगता है | 

सोमवार, 28 अक्टूबर 2019

कविता : इन्सां सोच

" इन्सां सोच " 

बदल रहा है जमाना, 
बदल रही है इन्सां सोच | 
बढ़ रही है जनसंख्या,
बढ़ रहीं है तकनीकी खोज |
पुराणी सोच को भुलाकर, 
भीड़ - भाड़ की जिंदगी में आकर | 
जीवन की रेस में दौड़ रहे है,
गिर रहे , फिसल रहे और
 वक्त आने पर संभल रहे है  | 
घड़ी की सुई बढ़ रही है, 
पल - पल वक्त बदल रहा है | 
मन तो मचल रहा है, 
पर सोच इन्सां को बदल रहा है | 

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है जो  की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | प्रांजुल पढ़ लिखकर एक इंजीनियर बनना चाहते हैं और गरीब बच्चों की मदद करना चाहतें हैं | 

कविता : बनना है तुझे महान

" बनना है तुझे महान "

राह  है  कठिनाई से भरी,
इतना की उम्मीद से परे | 
जिसे करना है पार,
झूझना है ताकि न हो हार | 
कहीं चढ़ान तो कहीं ढलान, 
कहीं ऊँचा तो कहीं नीचा |  
चढ़े न इतना जल्दी थकान,
बनना है तुझे इस राह में महान | 
उभारना है कठिनाइयों के बीच,
मरना है तुझे कुछ ऐसा ही तीर | 
राह  है  कठिनाई से भरी,
इतना की उम्मीद से परे | 

कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता कुलदीप के द्वारा लिखी  गई है जिसका शीर्षक है "बनना है तुझे महान " | कुलदीप को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और अभी तक बहुत सी कवितायेँ लिख चुके हैं | कुलदीप इस कविता के माध्यम से बताना चाहते हैं की जिंदगी दरबदर कठिन होती ही जा रही है | 

शनिवार, 26 अक्टूबर 2019

कविता : वह शिक्षा क्या जो

" वह शिक्षा क्या जो "

वह शिक्षा क्या जो, 
दूसरों में बाँटी न जा जाए | 
वह जीवन क्या जो, 
दूसरों के साथ बिताया न जाए | 
तुमने डिग्री हासिल कर , 
तो क्या  ही कर लिया | 
जब तक तूने ग्रहण किया
ज्ञान को जीवन में उतारा नहीं 
बहुत ही किया तुमने, 
उन चीजों की व्याख्या | 
सभी चीजों को जानकर तो देखो,
यह ज्ञान का समन्दर इसमें झाँक कर देखो | 

कवि : राज कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर 
कवि परिचय : यह कविता राज के द्वारा लिखी गये है जो की प्रयागराज के रहने वाले है | राज को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | राज का शिक्षा के प्रति  रखते हैं इस कविता के माध्यम से बयां किया है | राज पढ़ाई में बहुत ही अच्छा है | राज को लोगों से बात करना बहुत ही अच्छा लगा है | 

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2019

कविता : सत्य की राह पर

" सत्य की राह पर "

चल पड़े है देश की ओर,
लेकर आज़ादी की तमन्ना | 
सत्य और अहिंसा को,
वो अपने जीवन पर अपनाएँ | 
अपनी राह में सत्य को अपनाए,
यह बात उन्होंने कितनों को बतलाए |  
न फ़िक्र की अपनी जिंदगी की,
न सोचा अपने तन की | 
जो सोचे थे देश के सपने, 
जहाँ हो केवल अपने | 
जब हर एक कोई उठ गया,
जो देखे सपने वो पूरा हो गया | 
इस सत्य की राह पर, 
आज़ादी की तमन्ना पूरा हुआ | 

कवि : संजय कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता संजय के द्वारा लिखी गई है जो की एक सीख को दर्शाती है | जीवन में यदि सच्चाई को अपना लेगें तो यह एक सुखद प्रणाम मिलता है | जीवन में लोग झूठ बोलने के लिए सच्चाई को छुपाने की कोशिश करते हैं परन्तु एक दिन वह सबके सामने आ ही जाती है | संजय को कवितायेँ लिखना बहुत अच्छा लगता है | 

बुधवार, 23 अक्टूबर 2019

कविता : मेर प्यारी माँ

" मेर प्यारी माँ "

कौन है जिसने हमें जीना सिखाया,
कौन है जो हर वक्त साथ निभाया | 
गर्मी की वो छाँव है ,
सर्दी की वो धूप है | 
जितने भी मौसम है, 
उसके कर्ज़दार हैं हम | 
रात में वह पहरेदार है,
हमारी हर गलती की जिम्मेदार है | 
न ही वह धरती है 
और न ही है कोई आसमां,
वह तो है मेरी प्यारी माँ |   

कवि : अखिलेश कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता अखिलेश के द्वारा लिखी गई है जो  कि  बिहार के नवादा जिले के रहने वाले हैं और "अपना घर" संस्था में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं | इस कविता का शीर्षक" माँ "है जिसपर उन्होंने यह कविता लिखी है | अखिलेश पढ़ाई में बहुत ही अच्छे हैं | 

कविता : छोड़ दिया तूने ये देश

" छोड़ दिया तूने ये देश "

क्या आशा करके छोड़ दिया तूने ये देश, 
जहाँ पड़ा है कचरों का ढेर | 
जिसको तूने आज़ाद करवाया,
उसने तुझे इस मन से हटाया | 
प्रदूषित है यह हवा और पानी, 
बिलक - बिलक मर रहे हैं प्राणी | 
क्या आशा करके छोड़ दिया तूने ये देश,
जहाँ पड़ा है अत्याचारों का ढेर | 
हर इंसान है डरा सहमा, 
तब भी उसे शांत है रहना | 
तुम थे इस देश की शान,
तुमको खोकर हो गए अनजान | 
क्या आशा करके छोड़ दिया तूने ये देश,
जहाँ पड़ा है कचरों का ढेर | 

कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर 
कवि परिचय : यह कविता कुलदीप के द्वारा लिखी गई है जिसका शीर्षक है "छोड़ दिया तूने ये देश "| कुलदीप ने यह कविता उन लोगों के लिए लिखी है जो इस भ्रम में आकर यह देश छोड़ देते हैं की यहाँ गन्दगी और अर्थव्यवस्था फैली हुई है लेकिन कभी यहाँ की संस्कृति की गहराइयों में नहीं जातें है की यहाँ की संस्कृति कितने वर्ष पुरानी है | 

सोमवार, 21 अक्टूबर 2019

कविता : हर पल सुहाना लगता है

" हर पल सुहाना  लगता है "

हर पल सुहाना  लगता है,
हर कल बेगाना लगता है | 
हर सुबह नयी लगती है,
हर मंज़िल नज़दीक लगती है | 
हर सपना सच लगता है,
हर घर पुराना लगता है | 
ख्वाइश पर खेलना भी बेगाना लगता है,
तारों का टिमटिमाना सुंदर लगता है |
बच्चों की तरह खिलखिलाना अच्छा लगता है,
क्योंकि हर पल सुहाना लगता है |  

कवि :  कुलदीप कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता कुलदीप के द्वारा लिखी गई है | कुलदीप छत्तीसगढ़  के रहने वाले हैं | कुलदीप को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | कुलदीप डांस  भी अच्छा कर लेते हैं | कुलदीप को पढ़ना , खेलना और अन्य गतिविधियों में हिस्सा लेना बहुत अच्छा लगता है |  

कविता : नदी के पास

" नदी के पास "

जब  मैं बैठा था नदी के पास,
मेरे दिमाग  रही थी कुछ बातें खास |
क्या होता है इसके अंदर,
क्या जुड़ा है इससे कोई समंदर | 
या फिर है इसमें सिर्फ पत्थर ही पत्थर,
या फिर इसमें भी है कुछ मच्छर | 
जिनके अंदर है कुछ अलग ही लक्षण,
बस ममें इसी बात पर दौड़ाऊँ दिमाग,
जब मैं बैठा था नदी के पास |   

कवि : समीर कुमार, कक्षा : 9th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता समीर के द्वारा लिखी गई है जो की प्रयागराज के निवासी हैं और कानपुर के ' अपना घर ' नामक संस्था में रहकर अपनी शिक्षा को ग्रहण कर रहे हैं | समीर को कवितायेँ लिखने  का बहुत शौक है | समीर एक अच्छे संगीतकार भी हैं | छोटे बच्चों को कुछ नया करने के लिखे बहुत प्रेरित करते हैं |  

शनिवार, 19 अक्टूबर 2019

कविता : मौसम

" मौसम "

यह मौसम है बड़ा सुहाना,
मन करता है बस इसी में जीना | 
इस मौसम में किसी को तो है भीगना,
क्योंकि किसी को न आता पसीना | 
मन करता है बस इसी को जीना, 
नहीं होगी मुश्किल अब देखना | 
क्योंकि अब है हमें सिर्फ खेलना,
इस मौसम से बातें है करना | 
यह मौसम है बड़ा सुहाना,
मन करता है बस इसी में जीना | 

कवि : समीर कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता समीर के द्वारा लिखी गई है जो की प्रयागराज के रहने वाले हैं | समीर को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | समीर कवितायेँ के अलावा संगीत और खेलकूद गतिविधियों में भी अच्छे हैं | पढ़लिखकर अपने परिवार की सहायता करना चाहते हैं |  

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2019

कविता : हटाते हैं कचरों का ढेर

" हटाते हैं कचरों का ढेर "

क्या आशा करके तूने छोड़ ये देश,
जहाँ पड़ा है कचड़ों का ढेर |
जिस को तूने आज़ाद कराया,
उसने तुझे इसे मन से हटाया |
प्रदूषित है यहाँ का हवा और पानी,
बिलक - बिलक मर रहे प्राणी |  
क्या आशा करके तूने छोड़ ये देश,
यहाँ पड़ा है अत्याचारों का ढेर |
हर इंसान है डरा सहमा,
तब भी उसे शान्त है रहना |
तुम  थे इस देश की शान,
तुमको खोकर हो गए अनजान |
न करो अब तुम देर,
अब  हटाते हैं यह कचरों का ढेर |
क्या आशा करके तूने छोड़ ये देश,

कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता कुलदीप के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं | कुलदीप ने यह कविता फ़ैल रहे भ्रस्टाचारों
के प्रति लिखी है की कैसे धीरे धीरे लोग इस देश से जा रहे है जिससे देश और भी कमजोर हो रहा है |

कविता : रविवार

" रविवार "

शब्द सुनकर ही मन में उल्लास आता है
जब दिल , मन मनमौजी बनकर उछलता है |
लेकिन रविवार की असहनीय सी शांति,
कहीं ला न दे क्रांति |
मुझे डर इसी बात का रहता है,
क्योंकि अब तो हर शख्स यही कहता है |
रविवार हमारा आरामदेह का दिन है,
और हमें बस विश्राम ही करना है |
जो करते हैं रविवार को भी काम,
बस लेते हैं वे सभी रविवार का नाम |
हमें मिलकर देना होगा इसका अंजाम,
क्योंकि रविवार को कर रहे है काम |
हर घर में रहे सहनीय सी शांति,
जिसे न बनना पड़े एक क्रांति |

कवि : समीर कुमार, कक्षा : 9th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता समीर के द्वारा लिखी गई है प्रयागराज के रहने वाले हैं | समीर को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | समीर अपनी कविताओं में ऐसी चीजों को व्यक्त जो उन्होंने खुद अनुभव किया हो |

शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2019

कविता : बरसात

" बरसात "

बरसात का मौसम आया,
चरों तरफ हरियाली छाया |
खेतों में भी फसल खूब आया,
जब बरसात का मौसम आया |
बादल ने भी बूंदें मजे से गिराया,
तालाबों में तब पानी भर आया |
जब बरसात का मौसम आया | |

कवि : कामता कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता कामता के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के नवादा जिले निवासी हैं | कामता को कवितायेँ लिखने बहुत शौक है | इस कविता का शीर्षक है बरसात | कामता ने बरसात के आने पर जो भी बदलाव आते हैं उसको अपनी कविता के माध्यम से उल्लेख किया है | कामता एक नेवी अफसर बनना चाहते हैं |  

गुरुवार, 3 अक्टूबर 2019

कविता : बदल रही है इंसां की सोच

" बदल रही है इंसां की सोच "

बदल रहा है जमाना,
बदल रही है इंसां की सोच |
बढ़ रही है जनसंख्या,
बढ़ रही तकनीकी खोज |
पुरानी सोच को भुलाकर,
भीड़ - भाड़ की जिंदगी में आकर |
जीवन की रेस में दौड़ रहे हैं,
गिर रहे , फिसल रहे हैं और,
वक्त आने पर संभल रहे |
घड़ी की सुई बढ़ रही है,
पल - पल वक्त बदल रहा है |
मन तो मचल रहा है,
पर इंसां की सोच बदल रहा है |

कवी : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर


कवि परिचय : यह कविता प्रांजुल के द्वारा लिखी गई है जो की छत्तीसगढ़ के निवासी हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखना बहुत पसंद है | प्रांजुल को नै चीजें सिखने में बहुत रूचि है | प्रांजुल पढ़ाई के साथ - साथ गतिविधियों में भी अच्छा है |