रविवार, 21 जुलाई 2019

कविता : काले बादल

" काले बादल "

देखो ये काले बादल,
भरा जैसे मटके में पानी |
कहाँ से यह आता है,
फूट - फूट कर बरस जाता है |
कोई इसे कुछ कहते नहीं,
बिन बादल मोर चहकते नहीं |
हरदम अपनी मर्जी का करता,
ये किसी की मर्जी न सुनता |
करता है अपनी ही मनमानी,
भरा जैसे मटके में पानी |

कवि : अखिलेश कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता अखिलेश के द्वारा लिखी गई है जो की कवितायेँ लिखने में बहुत रूचि रखते हैं | अखिलेश बिहार के नवादा जिले के निवासी हैं | वर्तमान समय में अपनाघर नामक संस्था में रहकर कक्षा 9 की पढ़ाई कर रहे हैं | अखिलेश पढ़लिखकर नेवई ऑफिसर बनना चाहते हैं |

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