मंगलवार, 9 जुलाई 2019

कविता : कभी कुछ खाश

" कभी कुछ खाश "

मैं सोचता हूँ कभी कुछ खास,
जिस पर मुझे खुद है विश्वास |
मेरी बचपन से ये पढ़ने की प्यास,
बना देती है मुझे उदास |
मेरी ये जिंदगी और बड़नसबी,
कहीं कर दे न सपने चूर |
सपनों पर निखरना चाहता हूँ,
लेकिन परिस्थितियाँ निखरने ने देती |
कोशिश करता हूँ सपना हो खाश,
जिस पर मुझे खुद पर हो विश्वास |

नाम : समीर कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर


कवि परिचय : यह कविता समीर के द्वारा लिखी गई है जो की प्रयागराज के निवासी हैं और अपना घर संस्था में रहकर अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं | समीर को कवितायेँ लिखना बहुत पसंद हैं और अभी तक वह बहुत सी कवितायेँ लिख चुके हैं | समीर को क्रिकेट भी खेलना भी बहुत पसंद है |

कोई टिप्पणी नहीं: