गुरुवार, 14 मार्च 2019

कविता : हवाएँ कुछ कह रहीं हैं

" हवाएँ कुछ कह रहीं हैं "

ठंडी हवाएँ कुछ कह रहीं हैं,
मानों प्रकृति में मंद से बह रही हैं |
प्रकृति का सौंदर्य देता है साहस,
गर्मी मौसम में भी पहुंचता है राहत |
वक्त भी साथ रहता है,
पर यह कुछ नहीं कहता है |
हवाएँ कुछ हमें कह जाती है,
एक बार आती फिर चली जाती हैं |
हवा एक समंदर की तरह होता है,
एक डूब जाए वह वहीँ रह जाता है |

                                                                                               कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर

कवि परिचय : यह है हैं प्रांजुल जिन्होंने यह कविता लिखी है जो की मूल रूप से छत्तीसगढ़ के निवासी हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | प्रांजुल पढ़लिखकर एक अच्छे इंजीनियर बनना चाहते हैं | प्रांजुल को इसके अलावा पेंटिंग करना बहुत पसंद है | लोगों से बात करना और कोई मदद हो तो वो भी करना बहुत अच्छा लगता है | बड़ों से मिलकर बात करना और भविष्य के लिए बात करने का बहुत शौक है |


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