" मेरी एक इच्छा थी "
बचपन में बहुत इच्छा थी ,
पर बढ़ती उम्र में घटती चली गई।
डॉक्टर, पुलिस, इंजीनियर में जाना था।
पर जिंदगी कुछ चीजों में अटकी रह गई
सपनो के बारे में ख्याल ही आना बंद हो गया
मंजिल से भटकर दिल ने मुस्कुराना भी छोड़ दिया
बीच में आवाज आई थी की ,
चलो एक बार और कोशिश कर एक और बार
पर उस समय दिल के साथ - साथ
मन और तन ने भी मुँह मोड़ लिया।
बचपन में बहुत इच्छा थी ,
पर बढ़ती उम्र में घटती चली गई।
कवि : गोविंदा कुमार, कक्षा : 9th,
अपना घर.
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