"परिंदा "
सोए हुए गुमसुम परिंदा ,
अब जाग जाओ तुम |
देखो विपत्तियों का गठर लदा हुआ है ,
हर एक उम्मीदों पर |
अब जरा एक झलक देख लो ,
अपने अंदर की आत्मा को |
तुम्हारी हर बातो से दुःख है ,
सोए हुए गुमसुम परिंदा |
अब जाग जाओ तुम ,
तुमने सबको देखा है |
और देखा लोगो की कयामत ,
अब क्या सोचते हो |
बस एक ही बात में उलझे रहते हो ,
सोए हुए गुमसुम परिंदा |
अब जाग जाओ तुम ,
कवि :अमित कुमार ,कक्षा :10th
अपना घर
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