गुरुवार, 26 सितंबर 2024

कविता:"लापरवाह हूँ मैं

"लापरवाह हूँ मैं "
हवाओ के लिए हवा हूँ मै,
पर जिम्मेदारिओं के लिए लापरवाह हूँ मै| 
जैसे-जैसे ही उम्र बढ़ रहा है,
जिम्मेदारिओं का सिलसिला चढ़ रहा है| 
सोचता हूँ करूंगा हर चीज,
पर समझ नहीं आता की क्या करून मै| 
आख़िरकार लापरवाह हूँ मै,
सपने तो सजाये थे बहुत बड़े-बड़े| 
पर उनके समस्यांओ के लिए कभी नहीं लड़े,
मौज मस्ती में ही दिन कट गए सब| 
तब जाकर देखा की कंहा हूँ मै ,
आख़िरकार लापरवाह हूँ मै | 
कवि :गोविंदा कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

शनिवार, 21 सितंबर 2024

कविता : "दोस्त "

 "दोस्त "
कमी बस यही है एक संग जीना है तुम्हारे ,
ये दोस्त रूठना नहीं कभी मुझसे | 
कुछ खट्टी कुछ मीठी यादे है संग तुम्हारे ,
जबतक संग हो तुम मेरे,करने का जज्बा है सब कुछ | 
जो छोड़ दिया साथ तुमने ,करने को नहीं है कुछ भी | 
तुमसे ही तो हिम्मत है,जीने की राह तुमसे ही है | 
नाकामी में साथ रहे तुम्हारा,कामयाबी में रहे हाथ तुम्हारा | 
लाखो मुसीबते आये बस,उम्मीद न छोड़ना | 
करके दिखाऊंगा मैं,सफल पाके दिखाऊँगा मैं | 
कमी बस यही है एक,संग जीना है तुम्हारे | 
ये दोस्त नहीं रूठना मुझसे तुम ,
कुछ खट्टी कुछ मीठी यादे है संग तुम्हारे | 
कवि :साहिल कुमार,कक्षा :8th 
 अपना घर 


गुरुवार, 19 सितंबर 2024

कविता: "हिंदी दिवस "

 "हिंदी दिवस "
हम मुल्को का ,
नाचती- गाती है यह हिंदी | 
हर दरिया का पानी ,
हर मुशीबतों का हल है हिंदी | 
हम मुल्को का शान है हिंदी ,
सोते जागते सपनो का | 
पहचान है हिंदी ,
हर ख़ुशी का उल्लेख है हिंदी | 
हर बगिया का फूल है हिंदी ,
हर आंसूओ का बूँद है हिंदी | 
हर प्यार का जड़ है हिंदी ,
वह महकती खुशबू का अंग है हिंदी | 
कवि :अमित कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर 

रविवार, 15 सितंबर 2024

कविता:"चिड़िया "

"चिड़िया "
कितनी सुन्दर चिड़िया है ,
जरा उसके पंख और सुंदरता तो देखो | 
लगता है तुम्हे बुला रही है ,
सुरीली आवाज में चहचहा रही है | 
आसमान में उड़ती हवा को कटती ,
मस्त मगन लहरा रही है | 
लगता है किसी को बुला रही है ,
कितनी सुन्दर चिड़िया है | 
कवि :रमेश कुमार ,कक्षा :4th 
अपना घर 

बुधवार, 11 सितंबर 2024

कविता : "परिंदा "

 "परिंदा "
सोए हुए गुमसुम परिंदा ,
अब जाग जाओ तुम | 
देखो विपत्तियों का गठर लदा हुआ है ,
हर एक उम्मीदों पर | 
अब जरा एक झलक देख लो ,
अपने अंदर की आत्मा को | 
तुम्हारी हर बातो से दुःख है ,
सोए हुए गुमसुम परिंदा | 
अब जाग जाओ तुम ,
तुमने सबको देखा है | 
और देखा लोगो की कयामत  ,
अब क्या सोचते हो | 
बस एक ही बात में उलझे रहते हो ,
सोए हुए गुमसुम परिंदा | 
अब जाग जाओ तुम ,
कवि :अमित कुमार ,कक्षा :10th 
अपना घर  

सोमवार, 9 सितंबर 2024

कविता :"ये बेरंगीन हवाएं "

"ये बेरंगीन हवाएं "
गजब की है ये सदाएं ,
आसमान में उड़ा ले जाए ये बेरंगीन हवाएं | 
अपने  रंग में रंगकर बेहतरीन राग सुनाए ,
हर द्वेष भाव को क्षड़ ही भुलाए | 
मोहब्बत चारो ओर फैलाए ,
भुलवा देती है जीवन की बाधाएं | 
आसमान  में उड़ा ले जाए ये बेरंगीन हवाएँ ,
कोसो दूर  से सन्देश लाए | 
जीवन की सुंदरता से प्रेम मिलाये ,
रखती है दिलचस्पी बराबर सभी में | 
गजब की है सदाएँ ,
आसमान में उड़ा ले जाए ये बेरंगीन हवाएँ | 
कवि :साहिल कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर