रविवार, 5 फ़रवरी 2023

कविता :"नया सवेरा "

"नया सवेरा "
 ये कैसा  अँधेरा है | 
जो मुझको घेरा है ,
सब कुछ दिखना बंद हो गया |
लगता है होने वाला नया सवेरा है ,
धागा  वो उम्मीद जो |
 चार दीवारी  में सो रहे थे , 
धर  के  हाथ पर हाथ |
रो  रहे थे ,
अब होने वाला इस भी बसेरा है | 
लगता है होने वाला नया सबेरा है ,
 मुझे  पता है आने वाले दिनों में | 
मुश्किलों कि पहाड़ आएगा , 
और आकर मुझे गिरा कर जाएगा | 
पर उठने का काम मेरा है ,
लगता है होने वाला नया सवेरा है | 
कवि :देवराज , कक्षा :12th
 अपना घर

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