"नया सवेरा "
ये कैसा अँधेरा है |
जो मुझको घेरा है ,
सब कुछ दिखना बंद हो गया |
लगता है होने वाला नया सवेरा है ,
धागा वो उम्मीद जो |
चार दीवारी में सो रहे थे ,
धर के हाथ पर हाथ |
रो रहे थे ,
अब होने वाला इस भी बसेरा है |
लगता है होने वाला नया सबेरा है ,
मुझे पता है आने वाले दिनों में |
मुश्किलों कि पहाड़ आएगा ,
और आकर मुझे गिरा कर जाएगा |
पर उठने का काम मेरा है ,
लगता है होने वाला नया सवेरा है |
कवि :देवराज , कक्षा :12th
अपना घर
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