"घडी अंत की ओर"
अब घडी अंत की ओर है |
हर जगह बच्चो का ही शोर है ,
लाखो है अनपढ़ ग्वार |
कुछ लोग पढ़ के भी है मक्कार ,
सड़को पर इनका ही डेरा है |
हर गलियों में कोई एक शेरा ,
ठोकर खाते -खाते गड्डे में गिर गए है |
आधे से ज्यादा जिन्दा होकर मर गए है ,
अब घडी अंत की ओर है |
हर जगह बच्चो का ही शोर है ,
कवि : कुल्दीप , कक्षा :11th
अपना घर
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