सोमवार, 30 जनवरी 2023

कविता : "घडी अंत की ओर"

"घडी अंत की ओर"  

अब घडी अंत की ओर है | 
हर जगह बच्चो का ही शोर है ,
लाखो  है अनपढ़ ग्वार | 
कुछ लोग पढ़ के भी है मक्कार ,
सड़को पर इनका ही डेरा है | 
हर गलियों में कोई एक शेरा ,
ठोकर खाते -खाते गड्डे में गिर गए है | 
आधे से ज्यादा जिन्दा होकर मर गए है ,
अब घडी अंत की ओर है | 
हर जगह बच्चो का ही शोर  है ,

कवि : कुल्दीप , कक्षा :11th 

अपना घर  

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