बुधवार, 29 जून 2022

कविता : "मेरा चाह"

"मेरा चाह"

 मेरा चाह है कि मैं जेई क्लियर करू | 

पर समझ न आए इसके लिए क्या करू ,

चक्कर खा जाता है इतना बड़ा सिलेबस देखकर | 

सोच में पड़ जाता हूँ उन सब को फेककर ,

टाइम मैनेज करना हो जाता है मुश्किल | 

सोच में पड़ जाता है क्या कर पाऊंगा लक्ष्य हाशिल ,

घण्टों विताना पड़ता है पढ़ने में | 

खूब दिमाग लगाना पड़ता है कुछ करने में ,

कविता : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12th 

अपना घर 



1 टिप्पणी:

Prakash Sah ने कहा…

युवा मन खोज पे निकला है। शुभकामना।